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बोहरों का मंदिर – यह मंदिर भगवान भैरों के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह शहर के मध्य में स्थित है। मुख्य मंदिर में ग्यारह शिवलिंग हैं। कंवाड यात्री द्वारा इस मंदिर की परिक्रमा करके अनुष्ठान किया जाता है । ब्राह्मण संप्रदाय के पालीवाल परिवार द्वारा दैनिक गतिविधियों और मंदिर के मामलों का कार्य किया जाता है। शिवरात्रि के त्यौहार के दौरान मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ द्वारा पूजा अर्चना की जाती है।

हनुमतधाम – शुक्रताल में विश्व की सबसे बड़ी हनुमान जी की मूर्ति स्थापित होने का भी रिकॉर्ड है जो चरण से मुकुट तक लगभग ६५ फीट १० इंच तथा सतह से ७७ फीट है। सन १९८७ में स्थापित की गई हनुमंधाम परिसर में स्थित इस मूर्ति की एक अन्य विशेषता यह है कि इसके भीतर कागज पर विभिन्न लिपियों में राम नाम लिखे ७०० करोड़ भगवन्नाम समाहित हैं। इसमें प्रयुक्त कागज का कुल वजन १४ टन तथा क्षेत्रफल १००५० घन फुट है जिसे विशेष आवरण में स्थापित करके संजोया गया है। परिसर में इस मूर्ति के आस पास विश्व में पाई जाने वाली वानरों की विभिन्न प्रजातियों की भी मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। यहाँ स्थित हनुमान जी के मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शनों को आते हैं। समय-समय पर प्रवचनों का भी आयोजन किया जाता है।ड़ी हैं।

अक्षय वट – तीर्थ नगरी शुक्रताल के श्री शुकदेव आश्रम स्थित प्राचीन अक्षय वट वृक्ष महाभारत काल से अपनी मनोहारी छठा बिखेर रहा है।

तीर्थ नगरी शुक्रताल उत्तर भारत की ऐतिहासिक पौराणिक तीर्थ नगरी रही है। यहां पर करीब छह हजार साल पहले महाभारत काल में हस्तिनापुर के तत्कालीन महाराज पांडव वंशज राजा परीक्षित को श्राप से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करने के लिए गंगा किनारे प्राचीन अक्षय वट के नीचे बैठकर 88 हजार ऋषि मुनियों के साथ श्री शुकदेव मुनि जी ने श्रीमदभागवत कथा सुनाई थी । यह वट वृद्ध आज भी भक्ति सागर से ओतप्रोत हरा-भरा अपनी विशाल बाहें फैलाए अडिग खड़ा अपनी मनोहारी छटा बिखेर रहा है। पौराणिक वट वृक्ष के बारे में मान्यता है कि पतझड़ के दौरान इसका एक भी पत्ता सूखकर जमीन पर नहीं गिरता अर्थात इसके पत्ते कभी सूखते नहीं है और इसका एक विशेष गुण यह भी है कि इस विशाल वृक्ष में कभी जटाएं उत्पन्न नहीं हुई। करीब छह हजार वर्ष की आयु वाला ये वट वृक्ष आज भी युवा है। इस वृक्ष से 200 मीटर दूरी पर एक कुंआ है, जिसे पांडवकालीन कहा जाता है।

देश के कोने-कोने से अनेक श्रद्धालु तीर्थ नगरी में आते हैं और एक सप्ताह तक रहकर श्रीमद भागवत कथा का आयोजन कराते हैं। इसके अलावा अनेक श्रद्धालु सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन भी प्राचीन वट वृक्ष के नीचे बैठकर कराते हैं। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से प्राचीन अक्षय वट वृक्ष पर धागा बांधकर मनौती मांगते हैं। उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

सरकारी शैक्षिक संग्रहालय – १९५९ में स्थापित सरकारी शैक्षिक संग्रहालय, कई ऐतिहासिक धातु चित्रों, मूर्तियों, सिक्कों और पत्थर की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। संग्रहालय में विभिन्न प्रकार के पेंटिंग और पारंपरिक वेशभूषा में कपड़े पहने गुड़िया, डाक टिकट और तोपों का संग्रह है ।

गणेशधाम – गणेशधाम में भगवान गणेश की 35 फीट की उच्ची प्रतिमा स्थापित है। एक ओर त्रिपाथा नदी बहती है और दूसरे पर पवित्र वट वृक्ष है। यह सुखदेव मंदिर के पास, पीछे की तरफ भगवान हनुमान की एक विशाल मूर्ति भी है।

वहलना -यह अतिशयक्षेत्र है। यह मेरठ-मुजफ्फरनगर मार्ग पर मेरठ से ४३ तथा मुजफ्फरनगर से ५ किमी. है। मुख्य सड़क पर पाश्र्वनाथ मार्ग लिखा है। उस मार्ग से लगभग १ किमी. अंदर चलकर छोटा सा गाँव है। इस स्थान का मुख्य आकर्षण यहाँ का जैन मंदिर है। मंदिर विशाल है, इस मंदिर में श्वेत पाषाण की नौ फण वाली भगवान पाश्र्वनाथ की अति सुन्दर एवं अतिशय युक्त प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के बाहर उत्तर की ओर पांडुक शिला है। यहाँ पर कई मुनिराजों की चरण-छत्री भी बनी हैं। यहाँ प्रतिवर्ष २ अक्टूबर को मेला लगता है। जो यात्री रेल या सार्वजनिक बस से यात्रा करते हैं, उनको मुजफ्फरनगर पहुँचकर रिक्शा/टैम्पो द्वारा वहलना जाना चाहिए। यहाँ पर आवास व भोजन की समुचित व्यवस्था है।

बहु की मजार (सदात छात्रावास): जहां सैय्यद मुनववार लस्कर खान की पत्नी का अंतिम संस्कार किया गया था।